26-06-69 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन

“शिक्षा देने का स्वरुप – अपने स्वरुप से शिक्षा देना” 

बाप किसको देख रहे हैं? बच्चों को देख रहे हैं? आज मुरली में क्या सुना था। आप सभी किसको याद करते हो? (बाप, टीचर, सदुगुरु को) तो बापदादा भी सिर्फ बच्चों को नहीं लेकिन तीनों सम्बन्धों से तीनों रूप से देखते हैं। बच्चे तो सभी हैं लेकिन टीचर रूप में क्या देखते हैं? नम्बरवार स्टूडेंट को देखते हैं। और गुरू रूप से किसको देखते हैं? मालूम है नम्बरवार फॉलो करने वालों को। जिन्होंने फॉलो किया है और जिन्हों को अभी करना है, दोनों को देखते हैं। मुख्य फॉलो कौन-सा है? गुरु रूप से जो शिक्षा देते हैं। उसमें मुख्य फॉलो किसको करना है?गुरु रूप से मुख्य फॉलो क्या है? (याद की यात्रा) याद की यात्रा तो एक साधन है। लेकिन वह भी किस लिये कराते हैं? दूसरों की सद्गति करने पहले अपने को क्या फालो करना पड़ेगा? याद की यात्रा भी किसलिये सिखाई जाती है। गुरु रूप से मुख्य फालो यही करना है अशरीरी, निराकारी, न्यारा बनना। याद की यात्रा भी इसलिये करते हैं कि साकार में रहते निराकार और न्यारे अशरीरी हो रहें। जब अशरीरी बनेंगे तब तो गुरू के साथ जा सकेंगे। मुख्य रूप से तो यही फालो कर रहे हो और करना है। टीचर रूप का पार्ट अभी चल रहा है या पूरा हो चुका है? रिवाइज कोर्स टीचर करा रहे हैं या अपने आप कर रहे हो? (उनकी मदद है) पढ़ाई पढ़ाते नहीं हैं लेकिन मदद है। रिवाइज कोर्स के लिये स्कूल से छुट्टी ली जाती है, घर में जिसको होमवर्क कहा जाता है। लेकिन टीचर का कनेक्शन रहता है। साथ नहीं रहता। सिर्फ कनेक्शन रहता है। कनेक्शन तब तक है जब तक फाइनल पेपर हो। रिवाइज कोर्स के लिये टीचर हर वक्त साथ नहीं रहता है। तो अभी टीचर दूर से ही देख-रेख कर रहे हैं। कहाँ भी कोई मुश्किलात हो तो पूछ सकते हो। लेकिन जैसे पढ़ाई के समय साथ रहते थे वैसे अब साथ नहीं। अभी ऊपर से बैठ अच्छी रीति देख रहे हैं कि रिवाइज कोर्स में कौन-कौन कितने शक्ति से, कितनी मेहनत से उमंग-उत्साह से कोर्स को पूरा कर रहे हैं। ऊपर से बैठ दृश्य कितना अच्छा देखने का रहता है। जैसे आप लोग यहाँ ऊपर (सदली पर) बैठ देखते हो और नीचे बैठ देखने में फर्क होता है ना। इनसे भी ऊपर कोई बैठ देखे तो कितना फर्क होगा। बुद्धिबल से महसूस कर सकते हो। क्या अनुभव होता है? आज अनुभव सुनाते हैं। अनुभव सुनने और सुनाने की तो परम्परा से रीत है तो वतन में रहते क्या अनुभव करते हैं। वतन में होते भी टीचर का कनेक्शन होने कारण देखते हैं, कोई-कोई बहुत अलौकिकपन से पढ़ाई को रिवाइज कर रहे हैं, कोई समय गँवा रहे हैं कोई समय सफल कर रहे हैं। जब देखते हैं समय को गँवा रहे हैं तो मालूम क्या होता है? तरस तो आता है लेकिन तरस के साथ-साथ जो सम्बन्ध है, वह सम्बन्ध भी खैचता है। फिर दिल होती है कि अभी-अभी बाबा से छुट्टी लेकर साकार रूप में उन्हों का ध्यान खिंचवाये। लेकिन साकार रूप का पार्ट तो पूरा ही हुआ इसलिए दूर से ही सकाश देते हैं।

बाबा जैसे साकार रूप में लाल झण्डी दिखाते थे ना। वैसे ही वतन में भी। लेकिन देखने में आता है कि अव्यक्ति रस को, अव्यक्ति मदद को बहुत थोड़े ले पाते हैं। जो भी रास्ता तय करते विघ्न आते हैं उन विघ्नों को पार करने के लिये मुख्य कौन सी शक्ति चाहिए? (सहनशक्ति) सहनशक्ति से पहले कौन सी शक्ति चाहिए? विघ्न डालने वाली कौन सी चीज है? (माया) सुनाया था कि विघ्नों का सामना करने के लिये पहले चाहिए परखने की शक्ति। फिर चाहिए निर्णय करने की शक्ति। जब निर्णय करेंगे यह माया है वा अयथार्थ है। फायदा है वा नुकसान? अल्पकाल की प्राप्ति है वा सदाकाल की प्राप्ति है। जब निर्णय करेंगे तो निर्णय के बाद ही सहनशक्ति को धारण कर सकेंगे। पहले परखना और निर्णय करना है। जिसकी निर्णयशक्ति तेज होती है वह कब हार नहीं खा सकता। हार से बचने के लिये अपने निर्णयशक्ति और परखने की शक्ति को बढ़ाना है। निर्णयशक्ति बढ़ाने के लिये पुरुषार्थ कौन सा करना है? याद की यात्रा तो आप झट कह देते हो - लेकिन याद की यात्रा को भी बल देने वाला कौन सा ज्ञान अर्थात् समझ है? वह भी स्पष्ट बुद्धि में होना चाहिए। टोटल तो रखा है लेकिन टोटल में कहाँ-कहाँ फिर टोटा(विघ्न) पड़ जाता है। स्कूल में कई बच्चे एक दो को देख - टोटल तो निकाल देते हैं लेकिन जब मास्टर पूछता टोटल कैसे किया है? तो मूंझ जाते हैं। तो आप टोटल याद की यात्रा कह देते हो लेकिन वह टोटल किस तरीके से होगा वह भी जानना है। तो निर्णयशक्ति को बढ़ाने लिये मुख्य किस बात की आवश्यकता है (विचार सागर मंथन) विचार सागर मंथन करते-करते सागर में ही डूब जायें तो? कई ऐसे बैठते हैं विचार सागर मंथन करने लेकिन कोई-कोई लहर ऐसी आती है जो साथ ले जाती है। जैसे कोई भी स्थूल शारीरिक ताकत कम होती है तो ताकत की खुराक दी जाती है। वैसे ही निर्णयशक्ति को बढ़ाने लिये मुख्य खुराक यही है जो पहले भी सुनाया। अशरीरी, निराकारी और कर्म में न्यारे। निराकारी वा अशरीरी अवस्था तो हुई बुद्धि तक लेकिन कर्म से न्यारा भी रहे और निराले भी रहे जो हर कर्म को देखकर के लोग भी समझें कि यह तो निराला है। यह लौकिक नहीं अलौकिक है। तो निर्णयशक्ति को बढ़ाने के लिये यह बहुत आवश्यक है। जितना बातों को धारण करेंगे उतना ही अपने विघ्नों को भी मिटा सकेंगे। और जो सृष्टि पर आने वाले विघ्न हैं, उन्हों से बच सकेंगे। शिक्षा तो बहुत मिलती है लेकिन अब क्या करना है? शिक्षा स्वरूप बनना है। शिक्षा और आपका स्वधर्म अलग नहीं होना चाहिए। आपका स्वरूप ही शिक्षा होना चाहिए। स्वरूप से शिक्षा दी जाती है। कई बातों में वाणी से नहीं शिक्षा दी जाती है। लेकिन अपने स्वरूप से शिक्षा दी जाती हे। तो अब शिक्षा स्वरूप बनकर के अपने स्वरूप से शिक्षा देनी है। शिक्षा तो बहुत मिली। कोर्स तो पूरा हुआ ना। एक प्रश्न पूछा था कि अब जो बापदादा अन्य तन में आते है तो जैसे साकार रूप में मुरली चलाते थे वैसे ही क्यों नहीं चलाते? क्या वैसे ही मुरली नहीं चला सकते हैं? क्यों भाषा बदली, क्यों तरीका बदला ऐसे प्रश्न बहुतों को उठता है। जबकि तुम भाषण कर सकते हो तो बापदादा का कोई भी तन द्वारा मुरली चलाना मुश्किल है? लेकिन क्यों नहीं चलाते हैं? (दो चार ने अपने विचार सुनाये) जिस तन द्वारा पढ़ाने का पार्ट था वह पढ़ाई का कोर्स तो पूरा हुआ, अब फिर पढ़ाई-पढ़ाने लिये नहीं आते। वह कोर्स था उसी तन द्वारा पार्ट पूरा हो चुका है। अभी तो आते हैं मिलने के लिये, बहलाने के लिये। और मुख्य बातें कौन सी हैं? जैसे अशरीरी, कर्मातीत बन कर के क्या किया? एक सेकेण्ड में पंछी बन उड़ गया। साकार शरीर से एक सेकेण्ड में उड़े ना। तो अब पढ़ाई पूरी हुई। बाकी एक कार्य रहा हुआ है। साथ ले जाने का। इसलिए अब सिर्फ मिलने, अव्यक्त शिक्षाओं से बहलाने और उड़ाने लिये आते हैं। पढ़ाई के पॉइंट्स पढ़ाई का रूप अब नहीं चल सकता है। अभी कोर्स रिवाइज हो रहा है। लेकिन कितने समय में रिवाइज करेंगे? कितने तक कोर्स पूरा हुआ है? अभी यह सभी को निर्णय करना है कि कहाँ तक रिवाइज कोर्स हुआ है। कितना समय अब चाहिए? साकार तन के हर कर्म, हर स्थिति से अपने को भेंट करना उनको देखते, यह लक्ष्य रखते अपने को देखो फिर पता पड़ेगा कि कहाँ तक है। लक्ष्य तो बता दिया कि कैसे अपने को परखना, फिर उत्तर देना।

दूसरा प्रश्न यह देते हैं। होमवर्क तो तुम्हारा चल ही रहा है। उसमें विशेष ध्यान खिंचवाते हैं यह जो पार्ट भावी प्रमाण हुआ है उस साकार रूप को अव्यक्त क्यों बनाया? इनके भी कई गुह्य रहस्य हैं। इसकी गहराई में जाना, सागर के लहरों में नहाने नहीं लग जाना। लेकिन सागर के तले में जाना। फिर जो रत्न मिले वह ले आना। यह सोचना इनका गुह्य रहस्य ड्रामा में क्या नूंधा हुआ है। ऊपर कोई गुह्य रहस्य है। बिना रहस्य के तो कोई भी चलन हो ही नहीं सकती। 

अच्छा-अभी टाइम हो गया है।